झारखंड: एक लाठी चली और टूट गई दो ज़िंदगियाँ, जानें कैसे एक पल में बिखर गई दो जिंदगी

Rohit Baraik
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झारखंड: एक लाठी चली और टूट गई दो ज़िंदगियाँ, जानें कैसे एक पल में बिखर गई दो जिंदगी

Jharkhand crime:

झारखंड के सिमडेगा जिले के बानो थाना क्षेत्र के कुसुम महुआटोली गाँव में सोमवार की रात एक ऐसी घटना हुई, जिसने पूरे इलाके को झकझोर दिया।

जोवाकिम लोमगा नामक एक 85 वर्षीय बुजुर्ग शराब के नशे में अपने घर के आस-पास हंगामा कर रहे थे।

वो गाली-गलौज कर रहे थे, जिससे मोहल्ले में बेचैनी फैल गई। कुछ लोग खिड़की से झाँक रहे थे, कुछ चुपचाप दरवाज़े बंद कर रहे थे।

तभी अचानक माहौल ने ऐसा मोड़ लिया, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी।

विवाद के बढ़ने पर एक नाबालिग लड़के ने आवेश में आकर लाठी उठाई और बुजुर्ग पर वार कर दिया। यह कोई एक वार नहीं था।

गुस्से, डर और दबे हुए क्षोभ से निकले चार-पाँच वार था। जो सीधे जोवाकिम लोमगा के सिर पर लगा।

लाठी के वार से घायल जोवकीम लोमगा वहीं ज़मीन पर गिर पड़े। इससे मौके पर ही उनकी साँसें थम गईं। और इसके बाद गाँव में सन्नाटा पसर गया।

घटना की जानकारी मिलते ही ग्रामीणों ने तुरंत पुलिस को सूचित किया। मौके पर पहुँची पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लिया और पोस्टमॉर्टम के लिए सिमडेगा भेजा।

वहीं आरोपी नाबालिग को हिरासत में ले लिया गया है और आगे की कार्रवाई की जा रही है।

गुस्से की लाठी और उम्र का सम्मान –

यह सिर्फ एक हत्या की घटना नहीं है। यह समाज के उस टूटते हुए धागे की कहानी है। जिसमें एक छोर पर अनुभव, बुजुर्गी और उम्र का सम्मान है। तो दूसरे छोर पर युवा गुस्सा, असहिष्णुता और संवादहीनता।

जोवाकिम लोमगा एक ज़माने में जिनके पास गाँव के किस्से रहे होंगे, बच्चों को बताने के लिए कहानियाँ रही होंगी।

वो अब शराब में डूबे अकेलेपन और उपेक्षा का शिकार हो चुके थे। उनके शोर और गालियाँ शायद किसी आक्रोश का परिणाम थीं।

जो उन्होंने अपने समय से, अपने हालात से या फिर खुद से भी पाला हो।

वहीं दूसरी ओर एक नाबालिग जिसकी दुनिया अभी बन ही रही थी। जिसका गुस्सा अभी दिशा तलाश ही रहा था।

अचानक एक ऐसा अपराध कर बैठा जिससे उसका पूरा भविष्य सवालों के घेरे में आ गया।

 

एक लाठी चली और टूट गई दो ज़िंदगियाँ –

घटना में एक बुजुर्ग की साँसें तो चली गईं। लेकिन उससे ज़्यादा खामोशी उस नाबालिग के मन में उतर गई होगी, जिसने उस लाठी को चलाया।

क्या उसे अंदाज़ा था कि उसकी एक प्रतिक्रिया एक ज़िंदगी को खत्म कर देगी? और क्या किसी ने कभी उसके भीतर पलते गुस्से, असहिष्णुता, या भय को देखा?

इस घटना से हमें बहुत कुछ सुधार करने की जरूरत है। कभी कभी आज हम भूल जाते हैं कि बच्चों को सिर्फ शिक्षा नहीं, सहानुभूति की भी ज़रूरत होती है।

उन्हें सही और गलत के बीच सिर्फ शब्दों से नहीं, व्यवहार से सिखाया जाता है। उन्हें सुनना होता है, समझना होता है।

और बुजुर्गों को सिर्फ सहारा नहीं, सम्मान भी चाहिए। वो सिर्फ उम्र नहीं लादे होते, उनके भीतर वर्षों की पीड़ा, अनुभव और अधूरे सपने होते हैं।

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