Palm sunday 2025: देश भर में भक्तिभाव और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा खजूर पर्व
Palm sunday 2025:
भारत सहित विश्व के विभिन्न हिस्सों में आज खजूर रविवार यानी कि पाम संडे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जा रहा है।
प्रभु यीशु मसीह के यरूशलेम नगर में विजयपूर्वक प्रवेश की स्मृति में मनाये जाने वाले खजूर पर्व को लेकर मसीही समुदाय खजूर की डालियों के साथ चर्च में मिस्सा पूजा में शामिल हुए।
साथ ही प्रभु यीशु के प्रेम, बलिदान और शांति के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया।
भारत के विभिन्न राज्यों जैसे कि गोवा, केरल, तमिलनाडु, नागालैंड, मिजोरम, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड और पूर्वोत्तर राज्यों में खजूर पर्व बड़े उत्साह और धार्मिक श्रद्धा के साथ मनाया गया।
कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और अन्य ईसाई संप्रदायों के चर्चों में विशेष मिस्सा पूजा (Mass Ceremony) का आयोजन किया गया।
रविवार की सुबह ही चर्चों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। भक्तगण पारंपरिक परिधान में खजूर की डालियाँ हाथों में लिए हुए चर्च पहुँचे।
वहाँ पादरी ने मिस्सा पूजा की शुरुआत की। जिसमें प्रभु यीशु के यरूशलेम प्रवेश की घटनाओं को पढ़ा गया और खजूर की डालियों को आशीर्वाद देकर वितरित किया गया।
खजूर की कोमल डाली के साथ शोभायात्रा में शामिल हुए मसीही –
कई शहरों में खजूर रविवार के अवसर पर भव्य शोभायात्राओं का आयोजन भी किया गया। शोभायात्रा में बच्चे, युवा, महिलाएँ और बुज़ुर्ग सब शामिल हुए।
हाथों में खजूर की डाली लिए हुए भक्तों की टोलियाँ भजन-कीर्तन करती हुईं नगर के प्रमुख मार्गों से गुज़रीं। शोभायात्रा के दौरान प्रभु यीशु के यरूशलेम में प्रवेश को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया गया।
जिससे लोगों को धार्मिक शिक्षा भी मिली और आध्यात्मिक अनुभूति भी।
बच्चे अपने पारंपरिक परिधानों में सज-धज कर प्रभु यीशु की भूमिका निभाते हुए दिखाई दिए।
वहीं कुछ स्थानों पर पालकी में प्रभु की प्रतिमा को खजूर की डालियों से सजाया गया और श्रद्धालु उसे अपने कंधों पर उठाकर शोभायात्रा में ले गए।
प्रेम, क्षमा और सेवा का दोहराया संदेश –
मिस्सा पूजा के दौरान पादरियों ने प्रभु यीशु के बलिदान और उनके द्वारा दिए गए प्रेम, क्षमा और सेवा के संदेश को दोहराया।
उन्होंने बताया कि खजूर रविवार हमें याद दिलाता है कि भले ही जीवन में सम्मान और स्वागत मिले, फिर भी विनम्रता और सेवा का मार्ग ही सच्चा है।
धर्म गुरुओं ने दिए सन्देश –
विभिन्न चर्चों में धर्मगुरुओं ने सन्देश भी दिया। धर्म गुरुओं ने सन्देश देते हुए क्या कि प्रभु यीशु ने जब यरूशलेम में प्रवेश किया, तो उन्होंने घोड़े या रथ की बजाय गधे का चयन किया, जो उनकी विनम्रता का प्रतीक है।
यह हमें सिखाता है कि महानता की पहचान सत्ता नहीं, बल्कि सेवा है। उन्होंने कहा कि खजूर रविवार हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में प्रभु यीशु के पदचिह्नों पर चलें।
सेवा को अपना धर्म बनाएं और समाज में शांति, भाईचारा और करुणा का संदेश फैलाएँ। यही इस पर्व की सच्ची भावना है।
खजूर की डालियों का प्रतीकात्मक महत्व –
इस दिन विशेष रूप से खजूर की डालियाँ चर्च लाकर उन्हें आशीर्वादित किया जाता है।
इन्हें फिर श्रद्धालु अपने घरों में ले जाते हैं और साल भर घर के पूजा स्थल में रखते हैं।
माना जाता है कि इन आशीर्वादित डालियों से घर में शांति, समृद्धि और प्रभु का संरक्षण बना रहता है।
कई जगहों पर इन डालियों से क्रॉस (क्रूस) भी बनाया गया। जिन्हें घरों के द्वार या दीवार पर लगाया गया। यह एक आस्था और विश्वास का प्रतीक बन जाता है, जो लोगों को हर कठिनाई में प्रभु की याद दिलाता है।
सामाजिक सौहार्द और एकता का संदेश –
खजूर रविवार केवल ईसाई समुदाय के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेम, शांति और एकता का संदेश लेकर आता है।
इस दिन का मूल उद्देश्य सेवा, सहिष्णुता और करुणा का विस्तार है।
कई जगहों पर अन्य धर्मों के लोग भी शोभायात्रा और पूजा समारोह में भाग लेते दिखाई दिए, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है।
खजूर पर्व पर बच्चों और युवाओं की भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय रही।
उन्होंने धार्मिक नाटकों, गीतों और झाँकियों के माध्यम से प्रभु यीशु के जीवन को जीवंत किया। इससे न केवल उन्हें अपने धर्म के बारे में सीखने का अवसर मिला, बल्कि समाज को भी एक सकारात्मक और प्रेरणादायक संदेश मिला।
धर्म गुरुओं ने अपने संदेश में कहा कि खजूर पर्व एक ऐसा उत्सव है जो बाहरी दिखावे से अधिक आंतरिक आस्था और आध्यात्मिक शुद्धता का पर्व है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वागत और सम्मान से अधिक महत्वपूर्ण है सेवा और बलिदान का भाव।
आज जब दुनिया संघर्षों और तनावों से गुज़र रही है। ऐसे में प्रभु यीशु के संदेश प्रेम, क्षमा और शांति पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं।
खजूर पर्व का धार्मिक महत्व –
खजूर रविवार, ईसाई धर्म का एक पवित्र दिन है जो ईस्टर से ठीक एक सप्ताह पहले आता है।
बाइबिल के अनुसार, जब प्रभु यीशु मसीह यरूशलेम नगर में प्रवेश कर रहे थे, तब लोगों ने उनका स्वागत खजूर की डालियाँ और कपड़े बिछाकर किया था।
यह दृश्य प्रेम, सम्मान और आस्था का प्रतीक बन गया। इस घटना की स्मृति में ही प्रत्येक वर्ष खजूर रविवार मनाया जाता है।
यह पर्व पवित्र सप्ताह (Holy Week) की शुरुआत को चिह्नित करता है।
जो ईसाई धर्म में प्रभु यीशु के अंतिम सप्ताह की घटनाओं को याद करता है। खजूर रविवार के पश्चात प्रभु भोज, गुड फ्राइडे और ईस्टर संडे मनाया जाता है।