सरहुल पर्व: पूजा पाठ से लेकर घरेलू कार्य मे भी उपयोग होता है सखुआ (साल) पेड़, जानें आज भी कितना महत्व है सखुआ का पेड़

Rohit Baraik
8 Min Read
Disclosure: This website may contain affiliate links, which means I may earn a commission if you click on the link and make a purchase. I only recommend products or services that I personally use and believe will add value to my readers. Your support is appreciated!

सरहुल पर्व: पूजा पाठ से लेकर घरेलू कार्य मे भी उपयोग होता है सखुआ (साल) पेड़, जानें आज भी कितना महत्व है सखुआ का पेड़

पेश है लव-कुश की विशेष रिपोर्ट

सरहुल पर्व/सखुआ पेड़:
वैसे तो झारखंड राज्य में आदिवासी समुदाय के लोग सखुआ (साल) पेड़ को काफी पवित्र मानते हैं। लेकिन सरहुल पूजा में सखुआ पेड़ का खास महत्व होता है।

सरहुल पर्व में झारखंड राज्य के सरना आदिवासी समुदाय के लोग सखुआ पेड़ की पूजा करते हैं। इस पर्व में सखुआ फूल को कान में खोंसने की भी परंपरा है।

इसके अलावे भी सखुआ पेड़ का अपना एक अलग महत्व है। सखुआ पेड़ का उपयोग घरेलू कार्य से लेकर पूजन एवं अन्य कार्य मे भी किया जाता है।

काफी बेशकीमती बिकने वाले इस पेड़ के बोटे, डाली, पत्ते से लेकर फल भी कई उपयोग में लाया जाता है।

आइए जानते हैं किन किन कार्यों में होता है सखुआ पेड़ का उपयोग:

सखुआ पत्ते से बनता है पत्तल और दोना

सखुआ पत्ते का पत्तल बनाने से लेकर पूजा पाठ में भी किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं जंगलों से सखुआ पेड़ को तोड़कर लाती है।

इसके बाद इसे जोड़ कर सुंदर नकासी दे पत्तल और दोना बनाती है। सखुआ पत्ते से बने पत्तल में भोजन खाने से भोजन का स्वाद बढ़ जाता है।

साथ ही इससे कई फायदे भी होते हैं। आदिवासी परंपरा के मुताबिक सखुआ पत्ता में भोजन करना शुभ माना जाता है।

क्योंकि आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं और प्राकृतिक वस्तुओं में भोजन करना शुभ माना जाता है। त्योहारों में पूजा पाठ और भोज में भी इसी पत्ते का उपयोग किया जाता है।

सखुआ पत्ते के बिना सम्पन्न नहीं होते हैं पूजा पाठ –

सखुआ पत्ते का धर्मिक महत्व भी काफी अधिक है। किसी की पूजा पाठ में सखुआ पत्ते का ही प्रयोग किया जाता है।

सखुआ पत्ते के बिना न सिर्फ अदिवासी समाज बल्कि हिन्दू समाज के लोग भी कोई भी पूजा पाठ नहीं कर सकते हैं।

पूजा करने के लिए सखुआ पत्ते का स्पेशल दोना बनाया जाता है। बताया गया कि पूजा पाठ में प्रयोग होने वाले दोना बनाने के लिए पत्ते की डंटी को नहीं तोड़ा जाता है।

सखुआ फूल के बिना नहीं मानता है सरहुल पर्व –

सरहुल पर्व में भी सखुआ पेड़ की ही पूजा की जाती है। आदिवासियों के इस त्योहार में सरहुल फूल का खास महत्व है। आदिवासी समुदाय के लोग सरहुल शोभायात्रा में सरहुल फूल को कान में लगाकर शामिल होते हैं।

यहां तक कि मांदर, नगाड़ा आदि में भी सखुआ फूल को लगाया जाता है।

सखुआ की पतली डाली को दतुअन के रूप में प्रयोग करते हैं ग्रामीण –

भले ही शहरों में टूथब्रश से ब्रश किया जाता है। लेकिन ग्रामीण इलाके के लोग सखुआ पेड़ की डाली को ही दतुअन यानी ब्रश के रूप में प्रयोग करते हैं।

बाजारों में भी सखुआ दतुअन की काफी मांग रहती है। बताया जाता है सखुआ डाली का दतुअन दांत के साथ साथ पेट के लिए भी काफी फायदेमंद होता है।

खाल को रस्सी बनाने के लिए भी प्रयोग में लाते हैं ग्रामीण –

सखुआ पेड़ से खाल निकाला जाता है। खाल के बीच मे निकलने वाले पतली झिल्ली को ग्रामीण रस्सी के रूप में प्रयोग में लाते हैं।

कई बार जंगलों में पत्ते अथवा अन्य चीजों को बांधने के लिए रस्सी नहीं मिलती है। तो ग्रामीण सखुआ पेड़ की खाल को ही रस्सी बनाकर प्रयोग में लाते हैं।

हालांकि रस्सी, तत्काल निकाले गए खाल से सिर्फ बनाया जाता है।

जलावन की लड़की के लिए उत्तम माना जाता है सखुआ –

ग्रामीण क्षेत्र के लोग आज भी लड़की से ही खाना बनाते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि सूखे सखुआ की लकड़ी जलावन की लकड़ी के लिए बेहतर माना जाता है।

सखुआ की लकड़ी ज्यादा देर तक जलता है। बाजार में भी सखुआ के जलावन लकड़ी की मांग ज्यादा रहती है।

दरवाजे में चौखट के रूप में स्तेमाल होता है सखुआ –

लोग घर बनाने के लिए भी सखुआ पेड़ का ही स्तेमाल करते हैं। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में सखुआ पेड़ के बने चौखट की ही मांग आज भी काफी ज्यादा है।

बताया गया कि सखुआ पेड़ का चौखट काफी मजबूत रहता है। यह बर्बाद भी कभी नहीं होता है। बरसात में कई पेड़ की लकड़ी फैल जाती है।

जबकि सखुआ पेड़ की लकड़ी में वैसा कुछ शिकायत नहीं होता है। यही कारण है कि आज भी सबकी पसंद सखुआ लकड़ी के चौखट ही है।

बेशकीमती बिकता है सखुआ का बोटा, लकड़ी तस्कर इसी पेड़ की करते हैं तस्करी –

सखुआ पेड़ की लकड़ी की कीमत भी बाजार में काफी मांग अधिक मांग है। यही कारण है कि लकड़ी तस्करों की नजर सखुआ पेड़ों पर रहती है।

तस्कर सखुआ पेड़ को बोटा बनाकर बाजार में उच्चे भाव मे बिक्री कर मालामाल होते हैं। हालांकि यह गैरकानूनी है।

इसके बाद भी लकड़ी तस्कर धड़ल्ले से सखुआ पेड़ों को काट कर बाजार में बेचते हैं। बताया जाता है कि एक टैक्टर सखुआ बोटे की कीमत लाखों में रहती है।

गरीबों की तिजोरी भरता है सखुआ बीज –

सखुआ फूल के साथ साथ इसका फल भी ग्रामीणों के लिए फायदेमंद है। ग्रामीण सखुआ के फल को चुनकर जंगल से लाते है।

फिर इसे सुखाकर बीज को अलग करते हैं। और इसे बाजार में जाकर बेच देते हैं। सखुआ का फूल एक सीजन में हजारों-लाखों गरीबों की तिजोरी भरने का काम करता है।

सखुआ पेड़ के नीचे ही मिलता है रुगड़ा –

बरसात का मौसम आते ही बाजार में रुगड़ा की मांग बढ़ जाती है। स्वाद में नॉन भेज की तरह लगने वाले रुगड़ा काफी महंगे दामों में बिकता है।

शायद आपको यह कम ही पता होगा कि आखिर कहां मिलता है। बताया जाता है कि बहुताया रुगड़ा सखुआ पेड़ के नीचे ही पाया जाता है।

जिसे ग्रामीण जमीन के नीचे से खोदकर निकालते हैं।

सखुआ पेड़ के बिना आज भी नहीं सजता है सरना आदिवासी एवं हिन्दू समुदाय का मंडप –

बताया गया कि शादी विवाह में मंडप (मड़वा) बनाने के लिए भी सखुआ पेड़ का उपयोग बहुत जरूरी होता है। झारखंड, ओड़िसा, छतीसगढ़ सहित कई राज्य के ग्रामीण क्षेत्र में सरना आदिवासी एवं हिन्दू समुदाय के मंडप ।

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *