झारखंड में जेनरल बना जनजातीय समाज के आरक्षण और जमीन पर की जा रही है सेंधमारी –
झारखंड:
आप ने लोगों का धर्म बदलते हुए तो सुना ही होगा। लेकिन जाति भी बदल सकता है यह नहीं सुना होगा। आपको यह सुनकर अजीब ही लगेगा कि किसी ब्यक्ति का जाति बदल गया।
यानी जो लोग अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणी में आते थे। उन्हीं में से कुछ लोग अब जेनरल (Gen) कोटा में आ रहे हैं।
लेकिन जनाब झारखंड में ऐसा हो रहा है। यहां आज कई जनजाति समुदाय ऐसे हैं, जिनका जाति भी सरकार और सरकारी बाबुओं की गलती से बदल चुका है।
जाति बदल कर इन जनजाति समुदाय के आरक्षण और जमीन पर सेंधमारी की जा रही है।
अपने ही राज्य में अपने हक और अधिकार से वंचित हो रहा है आदिवासी सामाज –
हम बात कर रहे हैं झारखंड के चीक बड़ाईक (chik baraik) एवं लोहरा (lohra) जनजाति समाज की। आज अपने ही झारखंड राज्य में चीक बड़ाईक और लोहरा समाज के कई लोग आरक्षण के लिए परेशान है।
सरकारी बाबुओं और जमीन दलालों की मिलीभगत से इस भोले भाले आदिवासियों के एसटी जाति (ST) का प्रमाण पत्र निर्गत करने पर कई जिलों में रोक लगा इनके जमीन की खरीद बिक्री जोरों पर जेनरल कोटे में की जा रही है।
पर सरकार और उसका तंत्र इसे रोकने के बजाय सिर्फ राजनीति कर रही है।
आदिवासियों की जमीन का मालिक सरकार, फिर भी जेनरल में हुई धड़ल्ले से आदिवासियों के जमीन की बिक्री –
वैसे तो आदिवासी समुदाय के जमीन का मालिक स्वयं सरकार होती है। जब तक सरकार से अनुमति नहीं मिलती, तब तक इनकी जमीन की खरीद फरोख्त नहीं की जा सकती है।
लेकिन इन आदिवासी जनजाति समुदाय के जमीन की बड़ी तेजी से खरीद बिक्री जेनरल कोटे पर होती रही।
इस समुदाय के जमीन की खरीद बिक्री के जांच करने अथवा रोक लगाने का ठेका सरकार ने अनुमंडल स्तर से लेकर अंचल स्तर तक के अधिकारियों व कर्मचारियों को दे रखा है।
इसके बाद भी वर्षो पूर्व इन जनजाति समुदाय के जमीन की खरीद बिक्री जेनरल कोटे में कैसे हो गई। ये आज भी जांच का विषय है।
आदिवासी समाज को जेनरल बनकर बेचने की सरकारी बाबुओं ने कैसे दी अनुमति?
अगर सवाल यह है कि इस समाज के लोगों ने ही जेनरल बनकर जमीन बेचा है। तो भी सरकारी बाबुओं ने इसके लिए कैसे अनुमति दे दी।
आखिर सरकारी कार्यालय में जमीन का खतियान तो रजिस्ट्री के समय गया ही होगा। जब खतियान गया तो उसमें चीक अथवा चीक बड़ाईक अथवा बड़ाईक, लोहरा अथवा लोहार शब्द देखकर क्यों नहीं रोका गया।
कहीं बाहरी लोगों को इस समाज के जमीन बसाने की साजिश तो नहीं?
यह खेल झाखण्ड में बाहरी लोगों को बसाने की कहीं एक साजिश तो नही है? जानकारों की मानें तो राज्य में जेनरल समुदाय के लोगों की जमीन की संख्या काफी कम रह गई है।
इस कारण लोगों की गिद्ध नजर चीक बड़ाईक अथवा लोहरा समाज के जमीन पर है। यही कारण है कि बड़े पैमाने पर इन आदिवासियों को जेनलर बनाकर इनकी जमीन की खरीद बिक्री का खेल चल रहा है।
सरकारी बाबू इन पर रोकने के बजाय उल्टा जेनरल बनकर जमीन बेचने का हवाला देते हुए इस जनजाति समुदाय के लोगों का जाति प्रमाण पत्र निर्गत नहीं कर रहे हैं। अगर कर भी रहें हैं तो बहुत आनाकानी करते हैं।
1932 के खतियान में आदिवासी तो फिर 1908 के खतियान के अनुसार जेनरल कैसे?
अब यहां सवाल यह है कि जो लोग 1908 के खतियान के अनुसार एसटी जाति में आते थे। आज वही लोग आखिर 1932 के खतियान के अनुसार कैसे जेनरल बन गए। आखिर इन बीच के वर्षों में ऐसा क्या हो गया कि इनकी जाति ही बदल गई।
इसके लिए ये जनजाति जिम्मेवार है या फिर सरकार का तंत्र।
1932 में बने खतियान में हुई त्रुटि पर सुधार क्यों नहीं करना चाहती है सरकार?
आज झारखंड राज्य में जमीन के सभी कागजात ऑनलाइन कर दिया गया है। इसमें बहुत सारी त्रुटि है। इस त्रुटि के लिए आम आदमी को दोषी ठहराना कहाँ तक उचित है। जब आज आम आदमी इसके लिए दोषी नहीं है और ऑनलाइन में हुई त्रुटि में सुधार किया जा रहा है।
फिर 1932 में बने खतियान में हुई त्रुटि पर सरकार क्यों सुधार नही करना चाहती है।
सरकारी बाबुओ की गलती के कारण भुगत रहे हैं सामाज के लोग –
आखिर क्यों सरकारी बाबुओं की गलती का खामियाजा इस जनजाति समुदाय के लोग भुगत रहे हैं। इस समुदाय के लोगों का जाति आखिर कैसे बदल गया।
धर्म बदलने का मामला होता तो अलग बात होती। लेकिन यहां जाति बदला गया है। इसमें आखिर क्या कहा जा सकता है।
अगर सरकार इनकी जाति बदल कर दूसरे जाति का प्रमाण पत्र निर्गत कर रही है, तो फिर आज भी ये समाज अपने ही चीक बड़ाईक अथवा लोहरा समाज के लोगों में ही शादी विवाह क्यों कर रहे है?
अगर वे चीक बड़ाईक अथवा लोहरा जाति में नहीं आते हैं। तो शदियों से ऐसे लोगों का रिश्ता अपने ही समाज के लोगों के साथ क्यों होता आ रहा है।
आखिर इन जनजाति समुदायों की जाति बदलने के पीछे क्या है कारण?
अगर इनकी जाति बदली होती तो जाहिर सी बात है कि ये अलग जाति के लोगों से शादी विवाह करते। पर ऐसा तो नहीं हो रहा है। इनका जन्म-मरण, भाषा-संस्कृति, शादी-विवाह सभी कार्य पूर्वत की तरह ही हो रही है।
आखिर इन जनजाति समुदायों की जाति बदलने के पीछे क्या कारण है। सवाल बहुत है। पर जवाब किसी के पास नहीं। सरकार के पास जवाब तो है।
पर वही गोल मटोल जवाब है। जिसका उतर कहीं भी कोई भी सवाल पर फिट नहीं बैठती।
नहीं हुई पहल तो घट जाएगी आदिवासियों की संख्या –
अगर समय रहते इन जनजाति समुदाय को उनका हक नहीं मिलता है, तो आने वाले दिनों में राज्य में अनुसूचित जनजाति समुदाय की संख्या घटती चली जायेगी।
खासकर चीक बड़ाईक समाज और लोहरा समाज का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा और ये अपने ही राज्य में अपने हक और अधिकार से वंचित रह जाएंगे। सरकार को इस पर गहनता से बिचार करने की जरूरत है।