औषधिय पेड़: गर्मी आते ही बढ़ जाती है पुटकल साग की मांग

Rohit Baraik
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औषधिय पेड़: गर्मी आते ही बढ़ जाती है पुटकल साग की मांग

औषधिय/गुणकारी पेड़ :
गर्मी का मौसम शुरू होते हैं औषधिय गुणों से भरपूर फुटकल साग की मांग बाजारों में बढ़ जाती है। स्वाद में खट्टे लगने वाले फुटकल साग में विटामिन सी प्रचुर मात्रा पाई जाती है।

जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद है। यही कारण है कि लोग इस साग, चटनी के रूप में खाने के साथ साथ दवा के रूप में भी इस्तेमाल में लाते हैं।

वैसे तो पुटकल साग पतझड़ के मौसम में पाए जाते हैं। लेकिन लोग इसे सूखा कर रखे रहते हैं और सालों भर इसे साग और चटनी बनाकर खाते हैं।

बाजार में यह नाम मात्र के खेजा में बिकता है। वैसे पुटकल साग हमेशा नहीं मिलता है।

पुटकल साग का भी एक सीजन होता है। सीजन के समय मे भी इसे तोड़ने के लिए ग्रामीणों के पास बमुश्किल 5 से 7 दिन का समय मिलता है।

इन पांच से सात दिनों के अंदर साग नहीं तोड़ा गया तो साग पत्ते में तब्दील हो जाते हैं। इसके बाद इसका उपयोग साग के रूप में नहीं किया जा सकता है।

पतझड़ के मौसम में पुटकल के पेड़ों से पत्ते झड़ जाते हैं। इसके बाद इन पेड़ों से नई कोपलें आने लगती है। तब ग्रामीण इन्हीं नई कोंपलों को तोड़कर घर लाते हैं।

इसके बाद इस पत्ते को उबाल लेते हैं और उबाले गए पत्ते को चटनी बनाकर खाते हैं। वहीं सालों भर खाने के लिए ग्रामीण इसे सूखा कर रख देते हैं।

पुटकल साग बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन है। ग्रामीण इसे चावल के माड़ में डालकर गुड़ा दाल बनाकर खाते हैं।

झारखंड के कई होटलों में यह स्वादिष्ट व्यंजन बनता है। ग्रामीणों की मानें तो इसका अचार भी बनता है। जो काफी अधिक स्वादिष्ट लगता है।

यही कारण है कि लोग पुटकल साग के दीवाने हैं।

दस्त से बचाने के साथ साथ लू के प्रभाव को भी कम करता है पुटकल साग –
गर्मियों के मौसम में यदि किसी को लू लग जाए तो इसकी थोड़ी सी मात्रा पानी में भिगोकर मरीज को उसका शरबत पिलाया जाय तो, शरीर से लू का प्रभाव खत्म हो जाता है।

दस्त होने पर भी इसका सुखा हुआ साग पानी में भिगोकर मरीज को पिलाया जाता है। इससे भी दस्त से छुटकारा मिलती है। इस कारण गर्मी में इसकी मांग ज्यादा होती है।

टेड़ी खीर है पेड़ से पुटकल साग तोड़ना –
वैसे तो पुटकल के पेड़ काफी बड़े बड़े होते हैं। इस कारण बड़े-बड़े पेड़ों से फुटकल साग को तोड़ना टेढ़ी खीर है और यह हर किसी के बस की बात नहीं है।

ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डालकर तोड़कर घर लाते हैं। यही वजह है कि बाजारों तक आते-आते यह बहुत कीमती हो जाते हैं और ग्रामीणों को अच्छी मुनाफा देती हैं।

पेड़ की डाली को काटकर रोपा जाता है पुटकल पेड़ –
ग्रामीणों ने बताया कि पुटकल पेड़ को रोपने के लिए कोई बीज नही होती। इसको कलम करने की भी जरूरत नहीं है। पुटकल के पुराने पेड़ की एक डाली को काटकर जमीन में गाड़ देते हैं।

इसके बाद इसे मवेशियों से बचाने के लिए घेर देते हैं। साथ ही रोजाना पटवन कर छोड़ देते हैं। इसके बाद यह आसानी से बढ़ जाता है।

ग्रामीणों ने बताया कि इस पेड़ को रोपना बहुत ज्यादा कठिन कार्य नहीं है।

अच्छा गोंद का काम करता है पेड़ से निकलने वाला पानी, खाल से बनता है रस्सी –
पुटकल पेड़ का साग से लेकर डाली एवं उससे निकलने वाला पानी भी उपयोग में लाया जाता है।

ग्रामीणों ने बताया कि पुटकल पेड़ की डाली को काटने से सफेद रंग का गढ़ा और चिपचिपा पानी निकलता है। जो गोंद का काम करता है।

ग्रामीण इस पानी का उपयोग टूटी फूटी चीजों को चिपकाने में करते हैं। वहीं इसका खाल भी रस्सी का काम करता है।

कई बार ग्रामीण जंगल से लकड़ी वगेरह बांधकर लाने के लिए पुटकल पेड़ के खाल का उपयोग करते हैं।

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