एक ऐसा स्थान जिसे कहा जाता है हॉकी की नर्सरी, जहां के बच्चे बचपन से ही इंटरनेशन हॉकी खिलाड़ी बनने की रखते हैं चाहत

Rohit Baraik
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एक ऐसा स्थान जिसे कहा जाता है हॉकी की नर्सरी, जहां के बच्चे बचपन से ही इंटरनेशन हॉकी खिलाड़ी बनने की रखते हैं चाहत

एक ऐसा स्थान जिसे कहा जाता है हॉकी की नर्सरी, जहां के बच्चे बचपन से ही इंटरनेशन हॉकी खिलाड़ी बनने की रखते हैं चाहत

Hockey india:
देश के ज़्यादातर गांवों के खुले मैदानों में अब क्रिकेट की धाक है। लेकिन झारखंड के सिमडेगा जिले की बात ही अलग है।

यहां के मैदानों में बच्चे चाहे नंगे पांव हो या बिना शर्ट के। लेकिन उनके हाथों में हॉकी स्टिक जरूर दिख जाएगा।

यही कारण है कि इस जिले को हॉकी की नर्सरी कहा जाता है। ये वह धरती है जहाँ से न जाने कितने ही नेशनल और इंटरनेशनल हॉकी खिलाड़ी जन्में है।

जिन्होंने कम संसाधन में देश दुनिया मे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

इस जिले के ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के दाँत तक ठीक से निकले नहीं रहते हैं और वे इंटरनेशनल हॉकी खिलाड़ी बनने की चाहत लिए हॉकी खेलना शुरू कर देते हैं।

ये हॉकी के प्रति दीवानगी ही है कि इस जिले ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी दिए हैं।

शायद इसी का नतिजा है कि झारखंड हॉकी टीम में अधिकतर खिलाड़ी सिमडेगा जिले के ही रहते हैं। वहीं इंडिया टीम में भी लगातार अपनी जगह सुनिश्चित किये हुए हैं।

अगर आप सिमडेगा के किसी भी कोने में इन दिनों दोपहर घूम रहे होंगे तो आपको दोपहर में तपती धूप में नंगे पांव हॉकी खेल रहे बच्चों की तस्वीर नजर आएगी।

बच्चों की यह तस्वीर खुद बयां करेगी कि यूं ही सिमडेगा हॉकी में सिरमौर नहीं बना है। हॉकी जिले के माटी में रची बसी है।

बचपन से ही बांस के हॉकी स्टिक और शरीफे का गेंद के साथ खेल कर आगे बढ़ते हुए देश और दुनिया में अपने खेल की धाक जमाने वाले इन खिलाड़ियों के कारण ही जिले को दो राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता की मेजबानी मिल चुकी है।

अब इंटरनेशनल हॉकी स्टेडियम का भी निर्माण चल रहा है।

इंडोर गेम से ज्यादा आउटडोर गेम में ज्यादा ध्यान देते हैं यहां के बच्चे –

वैसे तो आजकल के बच्चे मोबाइल गेम में ज्यादा ध्यान देते हैं। लेकिन सिमडेगा के बच्चों की बात ही कुछ अलग है।

यहां के गांवों में रहने वाले बच्चे मोबाइल गेम से ज्यादा आउटडोर गेम यानी हॉकी खेल पर ज्यादा ध्यान देते हैं।

बच्चे मोबाइल को छोड़ कभी भी हॉकी स्टिक लिए हॉकी खेलते हुए दिख जाएंगे। कभी कभी तो ये छोटे छोटे बच्चे अपने बड़े भाई एवं दीदियों के साथ भी हॉकी खेलने लग जाते हैं।

जब ये बच्चे मैदान में हॉकी स्टिक लिए उतरते हैं तब ये हॉकी में इतने रच बस जाते हैं कि कब उनके पैंट सरक रहा है इसकी भी जानकारी उन्हें नहीं होती है।

कई बार तो बच्चे एक हाथ मे अपनी पैंट और एक हाथ मे हॉकी स्टिक पकड़ कर गेंद के पीछे भागते हुए भी नजर आ जाते हैं।

हॉकी की नर्सरी कहा जाता है इस जिले को –

म्यूनिख में माइकिल किंडो, मास्को में सिल्बानुस ड़ुंगडुंग के बाद टोक्यो में सलीमा टेटे जैसे हाकी के दिग्गज ओलिंपियन खिलाड़ी देने वाला झारखंड का सिमडेगा जिला तीन दर्जन से अधिक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी एवं सैकड़ों राष्ट्रीय खिलाड़‍ियों की जन्मस्थली रहा है।

इन सबमें एक बात जो कामन है, वह यह कि ये सभी हाकी खिलाड़ी ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं।

सिमडेगा जिला अंतर्गत केरसई प्रखंड का करंगागुड़ी गांव हाकी का सिरमौर माना जाता है।

गांव के उबड़-खाबड़ मैदान से हाकी सीखकर संगीता कुमारी, सुषमा, ब्यूटी समेत कई खिलाड़ी भारतीय टीम तक पहुंचे हैं।

भारतीय महिला हाकी टीम की पूर्व कप्तान असुंता लकड़ा, उनके भाई विमल लकड़ा, बीरेंद्र लकड़ा, भाभी कांति, तारणी कुमारी, सिरिल बिलुंग, मेजर ध्यानचंद अवार्डी सुमराय टेटे भी श्रेष्ठ हाकी खिलाड़‍ियों में शामिल रही हैं। ओलंपियन सलीमा टेटे भी इसी जिले की रहने वाली है।

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