धूमधाम से मनाया जा रहा सरहुल, जोहार सरना से गूंज रहा है झारखंड
सरहुल पर्व:
झारखंड के जनजातीय समाज का प्रमुख पर्व सरहुल पूरे हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है।
इस मौके पर जोहार सरना की गूंज पूरे झारखंड में गूंज रही है। सरहुल के अवसर पर विभिन्न गांवों और शहरों में पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा-अर्चना की गई और भव्य शोभायात्रा निकाली गई।
राजधानी रांची समेत राज्यभर में इस पर्व को लेकर विशेष उल्लास देखने को मिला।
पुजारी (पहान) ने की विधिवत पूजा-अर्चना –
सरहुल पर्व के अवसर पर ग्राम देवता और प्रकृति की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन गांव के पहान (पुजारी) द्वारा विधिवत पूजा-अर्चना की गई।
पूजा में साल वृक्ष (सरई पेड़) की टहनियों को विशेष रूप से स्थापित किया गया और देवता से गांव की सुख-समृद्धि की प्रार्थना की गई।
साथ ही नई फसल और महुआ से बने पारंपरिक पेय को अर्पित किया गया।
पूजा के दौरान जनजातीय समाज के लोग पारंपरिक वेशभूषा में नजर आए।
पुरुषों ने सफेद धोती-कुर्ता और गमछा धारण किया, जबकि महिलाओं ने लाल और सफेद रंग की पारंपरिक साड़ी पहनी।
गांव की महिलाएं पूजा के लिए “साल फूल” लेकर पहुंचीं, जिसे गांव के लोगों के बीच बांटा गया।
निकाली गई भव्य शोभायात्रा, गूंजे पारंपरिक गीत और नृत्य –
पूजा-अर्चना के बाद भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। शोभायात्रा में पारंपरिक मांदर, नगाड़ा और ढोल की गूंज सुनाई दी।
युवक-युवतियां पारंपरिक झूमर नृत्य करते हुए शोभायात्रा में आगे बढ़े। आदिवासी समाज के लोग पारंपरिक गीत गाते हुए सरहुल पर्व की खुशी में झूमते नजर आए।
रांची, गुमला, सिमडेगा, खूंटी, लोहरदगा, चाईबासा सहित पूरे झारखंड में सरहुल की धूम रही। राजधानी रांची में शोभायात्रा के दौरान विभिन्न चौक-चौराहों पर स्वागत के लिए मंच बनाए गए थे, जहां लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे।
प्रकृति पूजा का संदेश, पेड़ लगाने की अपील –
सरहुल पर्व प्रकृति और धरती के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है। इस अवसर पर जनजाति समाज के नेताओं और बुद्धिजीवियों ने पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया।
उन्होंने कहा कि सरहुल हमें प्रकृति से प्रेम करना सिखाता है, इसलिए सभी को अधिक से अधिक पेड़ लगाने और पर्यावरण को संरक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए।
सरहुल की धूम, पूरे राज्य में हर्षोल्लास का माहौल –
सरहुल पर्व की धूम पूरे झारखंड में रही। सरकारी दफ्तरों, स्कूलों और कॉलेजों में अवकाश रहा, जिससे लोग अपने परिवार के साथ त्योहार का आनंद ले सके।
राजधानी में सरहुल के रंग में रंगी सड़कों पर पारंपरिक परिधानों में सजे-धजे लोग नजर आए।
सरहुल सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है।
यह पर्व हमें प्रकृति से जुड़े रहने, सामाजिक एकता और खुशहाली का संदेश देता है। पूरे राज्य में सरहुल के इस उल्लासमय माहौल में हर कोई “जोहार सरहुल” के नारों के साथ पर्व की खुशियां मना रहा है।